How Jaipur was founded by the Maharaja



दिलचस्प! जब शिकार खेलते समय आया राजा को ख्याल और बसा दिया राजस्थान का यह मशहूर शहर


जयपुर. कई साल पहले आमेर के तत्कालीन महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय नाहरगढ़ शिकार के लिए आए थे, तभी उन्हें जयपुर बसाने का विचार आया था। इस जगह आमेर के तत्कालीन राजा अक्सर शिकार खेलने जाते थे।


नगर बसाने से पहले जयसिंह ने ताल कटोरा के नाम से तालाब चौकोर बनवाया और नाहरगढ़ में शिकार की ओदी (मचान) के स्थान पर बादल महल बनवाया। जय निवास उद्यान और सूरज महल बनवाया, जिसमें राधा गोविंददेवजी को कनक वृंदावन से लाकर विराजमान किया।


तीन तरफ पहाडि़यों से घिरे स्थान को सुरक्षा के लिहाज से सही मानते हुए नया जयपुर बसाने का निर्णय किया। राजगुरु रत्नाकर पौंडरिक व जगन्नाथ सम्राट जैसे विद्वानों के हाथों से गंगापोल दरवाजे पर नगर निर्माण की नींव रखी।


सवाई जयसिंह ने सात मंजिला महल व नगर का निर्माण प्रधान नगर नियोजक विद्याधर चक्रवर्ती की सलाह से करवाया। नौ वर्गों के सिद्धान्त के अनुसार नव गृह के आधार पर नौ चौकड़ियां बसार्इं। उत्तर दिशा को सुमेरु पर्वत मानते हुए चौकड़ी सरहद में सप्त खंडीय चंद्र महल (सिटी पैलेस) बनवाया। इसकी सातवीं मंजिल का नाम मुकुट मंदिर रखा।


सवाई जयसिंह ने चंद्र महल की दूसरी मंजिल का नाम प्रिय रानी सुख कंवर के नाम पर सुख निवास महल रखा। आमेर किले के एक महल का नाम भी सुख मंदिर है। रंग मंदिर के नाम से तीसरी-चौथी मंजिल के महल का नाम शोभा निवास है।


छवि निवास के नाम से पांचवी-छठी मंजिल श्री निवास महल कहलाती है। शोभा निवास में कांच की मनमोहक जड़ाई है। सातवी मंजिल के मुकुट मंदिर से एेसा नजारा दिखता है कि शहर पास आ गया हो।
चंद्र महल में प्रवेश के लिए परकोटा बनाने के साथ उदयपोल, विजयपोल, जयपोल आदि दरवाजों का निर्माण कराया। सर्वतोभद्र सभागार यानी दीवाने खास में सवाई माधोसिंह द्वितीय के बनवाए 57 हजार तोला चांदी के बड़े कलश रखे हैं।