When Jaipur Street smell of Sweets and Ghee - History of Jaipur


सुनहरा अतीतः जब जयपुर की गलियों से आती थी घी और पकवानों की महक 


जयपुर। सवाई माधोसिंह द्वितीय के शासन में आए दिन होने वाले हेड़ों के भोज से शहर के वातावरण में देशी घी की कचौरी,  चौगणी के लड्डू और मक्खन बड़ों की महक छाई रहती थी।

वैसे, रामसिंह के जमाने में भी हेड़ों के आयोजन होते थे, लेकिन माधोसिंह के राज में 42 सालों तक जीमण का सिलसिला परवान चढ़ा रहा। उन दिनों सम्पन्न लोग बिरादरी और व्यवहारियों को हेड़ों में जिमाना प्रतिष्ठा का सूचक मानते थे। 

हेड़े के लिए महाराजा से इजाजत लेनी पड़ती थी।  भुजिये, दाणा मेथी व दाख खेलरों की सब्जी, कैरी की लूंजी, हरी मिरच के टिपोरे व नुकती का रायता आदि व्यंजन तैयार करने में दर्जनों हलवाई दिन-रात लगे रहते थे।

रिकॉर्ड के मुताबिक महाराणी जादूनजी की स्मृति में छह दिन तक हेड़े का भोज हुआ था, जिसमें सातों जात के लोगों को गलियों में ढोल बजाकर निमंत्रित किया गया।

जलेब चौक, सिटी पैलेस का सरबता, हवामहल व आतिश के मैदान में हुए हेड़े में हजारों लोगों की ज्यौणार हुई। सर गोपीनाथ पुरोहित, महताब सिंह सिवाड़ व कांतिचंद्र मुखर्जी जैसे बड़े हाकिम हेड़े के इंतजाम में तैनात रहे। 

कौंसिल के सदस्य सर गोपीनाथ पुरोहित ने 10 जुलाई 1910 में हेड़ा किया, जिसमें चौगणी के लड्डू बनाने के लिए 12 बोरी खांड गली।

खेजड़ों के रास्ते में हुए भोज में पहले दिन दस हजार, दूसरे दिन पांच हजार और तीसरे दिन साढ़े चार हजार लोगों को जिमाने के बाद भी तीन हजार को जिमाने जितने सामान में कचौरी, भुजिया व नमकीन बचने पर अगले दिन उसका भी भोज कर दिया गया।

माधोसिंह द्वितीय की मृत्यु के बाद उनकी स्मृति में छह दिन तक हुए हेड़े में पहले दिन दो लाख, दूसरे दिन एक लाख और तीसरे दिन पचास हजार लोगों को जौहरी बाजार व चांदपोल बाजार में बैठाकर जिमाया गया।

नगर सेठ बंजी लाल ठोलिया की स्मृति में 7-11 मार्च 1930 में पांच दिन तक हेड़े का भोज हुआ। शिवजीराम भवन की दीवार तोड़कर जगह बनाई गई। हेड़ा शुरू होने के पहले व खत्म होने पर नगाड़ा बजाया गया।

पहले दिन संपूर्ण जैन समाज, दूसरे दिन जौहरी, तीसरे दिन सराफा, चौथे दिन ठिकानेदार सामंत व पांचवें दिन सातों जात को बुलाया गया।

देशी घी के लड्डू, मक्खन बड़े व कचौरी के अलावा दाणा मेथी और किशमिश की सब्जी परोसी गई। इस हेड़े पर 85 साल पहले दो लाख रुपए खर्च हुए थे। ढाई हजार पीतल की थालियों सहित लावणा बांटा गया।

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