राठौड़ वंश की कुलदेवी : श्री नागणेचियां माता


राठौड़ वंश की कुलदेवी : श्री नागणेचियां माता 

देश के मध्यकालीन इतिहाश में राजपूतो की बड़ी भूमिका रही है। राजपूतो के विभिन कुलो द्वारा विभिन देवियाँ कुलदेविया के रूप में पूजित है। राजपूतो में राठौड़ को न्यारा ही गौरव प्राप्त है शूरवीरता के उन्होंने जो आयाम प्रस्तुत किये, वे देश में ही नहीं दुनिया भर में मिसाल बने। इसीलिए उनका स्थायी विशेक्षण "रणबंका " बना। इन रणबंका राठौड़ो की कुलदेवी " नागणेची " है। देवी का ये " नागणेची " स्वरुप लौकिक है। 'नागाणा ' शब्द के साथ ' ची ' प्रत्यय लगकर ' नागणेची ' शब्द बनता है , किन्तु बोलने की सुविधा के कारण ' नागणेची ' हो गया। ' ची ' प्रत्यय ' का ' का अर्थ देता है। अत : ' नागणेची ' शब्द का अर्थ हुआ - ' नागाणा की ' . इस प्रकार राठोड़ो की इस कुलदेवी का नाम स्थान के साथ जुडा हुआ है। इसीलिए ' नागणेची ' को ' नागाणा री राय ' ( नागाणा की अधिष्ठात्री देवी ) भी कहते है। वैसे राठौड़ो की कुलदेवी होने के कारण ' नागणेची ' 'राटेश्वरी ' भी कहलाती है। नागाणा एक गाँव है जो वर्तमान में राजस्थान प्रदेश के बाड़मेर जिले में आया हुआ है एक कहावत प्रसिद्ध है ' नागाणा री राय , करै बैल नै गाय '। यह कहावत प्रसंग विशेष के कारण बानी। प्रसंग यह है कि एक चोर कहीं से बैल चुरा कर भागा। पता पड़ते ही लोग उसका पीछा करने लगे। भय के मारे वह चोर नागाणा के नागणेची मंदिर में जा पंहुचा और देवी से रक्षा की गुहार करने लगा कि वह कृपा करे , फिर कभी वह चोरी का कृत्य नहीं करेगा। अपनी शरण में आये उस चोर पर नागणेची ने कृपा की। जब पीछा करने वाले वहां पहुंचे तो उन्हें देवी - कृपा से बैलो के स्थान पर गाये दिखी। उन्होंने सोचा कि चोर कहीं और भागा है और वे वहां से चले गए। इस प्रकार चोर की रक्षा हो गई।

कुलदेवी 'नागणेची ' का पूर्व नाम ' चकेश्वरी ' रहा है। राठौड भी मारवाड़ में आने से पूर्व 'राष्टकूट ' रहे है कन्नौज का राज्य अपने अधिकार से निकल जाने के बाद जयचंद के वंशज राव सीहा मारवाड़ की ओर यहां अपना राज्य स्थापित करने के लिए प्रयास करने लगे। उन्होंने पाली पर अधिकार किया। उनके पश्चात् उनके पुत्र राव आस्थान ने खेड़ विजित किया।

आस्थान के पुत्र राव धुहड़ ने बाड़मेर के पचपदरा परगने के गाँव नागाणा में अपने वंश की कुलदेवी को प्रतिष्ठापित किया। आज बाड़मेर जिले की पचपदरा तहसील का स्थान धार्मिक आस्था के कारण प्रसिद्धि प्राप्त है। यहा प्राकृतिक मनमोहक स्वरुप की छठा देखते ही बनती है। पहाड़ो की ओट में मरुस्थल के अचल में,सुखी झाड़ियों के मध्य स्थित राव धूहड़जी का बनाया हुआ श्रद्धा का एक प्रमुख केन्द्र है। यहां पर स्थापित माता की मूर्ति का आज तक राठौड़ वंश अपनी कुलदेवी के रूप में पूजा - अर्चना करता आया है। यह निज मंदिर धार्मिक दृष्टि से भी बड़ा महत्वपूर्ण है तथा राठौड़ वंश के अतिरिक्त भी अन्य जातियों के श्रध्दालुओ का आस्था का भी केंद्र बना हुआ है।
राठौडो के हर गॉव या ठिकाने में माता का थान हमेशा स्थापित होता है ।

जय माँ श्री नागणेच्या माता जी

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Bisen Rajput