Maharaja Man Singh Jaipur - History of Jaipur
जब जनता की शिकायतों को खुद पढ़ते थे राजस्थान के ये राजा, विधवा ने सुनाई तकलीफ तो खोल दिया खजाना
वर्ष 1942 में एक निसंतान विधवा ने पति की मृत्यु पर पचास रुपए की पेंशन को कम बताया और रकम बढ़ाने की फरियाद कर दी। मानसिंह ने उसकी पेंशन ढाई सौ रुपए मासिक कर दी।
जयपुर
जयपुर के अंतिम महाराजा सवाई मानसिंह भारत की रियासतों में एेसे पहले महाराजा रहे जिनको ब्रिटिश सरकार ने आजादी के बाद 'ग्रेट कमांडर स्टेट ऑफ इंडिया' के प्रतिष्ठित सम्मान से नवाजा। यह सम्मान इंगलैंड के बकिंघम पैलेस परिसर में देने के नियम को तोड़कर ब्रिटिश हुकूमत ने महाराजा के शासन की सिल्वर जुबली के मौके पर जयपुर में आयोजित भव्य समारोह में प्रदान किया।
अवार्ड देने के लिए लार्ड माऊंट बेटन सितम्बर, 1947 में पत्नी के साथ जयपुर आए थे। सवाई माधोसिंह द्वितीय ने 21 अगस्त 1911 को ईसरदा में जन्मे मोर मुकुट सिंह को दत्तक पुत्र बनाकर मानसिंह द्वितीय के नाम से जयपुर की गद्दी पर बिठाया था।
विश्व में पोलो के प्रसिद्ध खिलाड़ी रहे मानसिंह ने 27 साल के शासन में मेडिकल कॉलेज, राजस्थान विश्वविद्यालय, सवाई मानसिंह अस्पताल, महारानी कॉलेज के अलावा बाजारों में बरामदों का निर्माण करवाया।
आधुनिक जयपुर के निर्माता मानसिंह ने रोजगार के लिए बिड़ला आदि उद्योगपतियों से सीमेंट, बियरिंग, सूत आदि के एक दर्जन से ज्यादा बड़े कारखाने खुलवाए। उनके शासन में परकोटे के बाहर तीन बड़ी आवासीय योजनाओं में सी-स्कीम, आदर्शनगर और बनीपार्क बसाया।
गवर्नमेंट हॉस्टल स्थित रियासत के सचिवालय में आम जनता के लिए शिकायत पेटी रखी गई। इन शिकायतों को मानसिंह खुद पढ़ते थे। वर्ष 1942 में एक निसंतान विधवा ने पति की मृत्यु पर पचास रुपए की पेंशन को कम बताया और रकम बढ़ाने की फरियाद कर दी। मानसिंह ने उसकी पेंशन ढाई सौ रुपए मासिक कर दी।
स्वतंत्रता के बाद राजप्रमुख बने मानसिंह ने कौंसिल भवन को विधान सभा के लिए व आर्मी मुख्यालय भगवन्तदास बैरक्स को शासन सचिवालय के लिए वर्तमान सरकार को सौंप दिया। इस वजह से जयपुर को राजस्थान की राजधानी बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
24 जून, 1970 को इंगलैंड के सेस्टर में पोलो खेलते हुए मानसिंह का निधन हुआ, तब 27 जून को सिटी पैलेस से गेटौर छतरियों के मार्ग में निकली अंतिम यात्रा में दर्शन करने असंख्य नागरिक उमड़ पड़े। अंतिम यात्रा को सिटी पैलेस से गेटौर पहुंचने में तीन घंटे से ज्यादा समय लगा।
अंतिम यात्रा में दो हाथियों पर बैठे कर्मचारी चांदी के सिक्कों की बौछार कर रहे थे। गोरखा, पंजाब, कुमायूं आदि सैन्य टुकड़ियां शस्त्र उल्टे कर चल रही थीं। अंतिम यात्रा में शामिल भीड़ के बारे में प्रत्यक्षदर्शी पुराने नागरिकों का कहना है कि जयपुर के इतिहास में उन्होंने आज तक किसी की भी यात्रा में इतनी भीड़ नहीं देखी।
नाहरगढ़ से 19 तोपों की सलामी के बाद ब्रिगेडियर भवानी सिंह ने पिता मानसिंह को मुखाग्नि दी। उनकी पुण्य स्मृति में गोविंददेवजी मंदिर में हुई भागवत कथा और बाद में गोविंददेवजी की शोभायात्रा में सारा शहर शामिल हुआ।
दिवंगत बाबूलाल सैनी ने ढूंढाड़ी में कविता यूं सुनाई थी- चंद्रमहल मै दर्शन करबा, भाग्या मरद लुगाई जी, मानसिंह महाराज पधार्या स्वर्ग लोक कै मांई जी।