सोलंकी क्षत्रिय वंश की कुलदेवी क्षेंमकरी ( खींवज माता )

सोलंकी क्षत्रिय वंश की कुलदेवी क्षेंमकरी ( खींवज माता ) 



खींवज माता के कई जगह मंदिर बने हुये है , सोलंकी राजपूतो की कुलदेवी खींवज माता का प्रमुख मंदिर राजस्थान में नागौर से ६३ कि. मी. तथा डीडवाना से ३३ कि.मी. की दूरी पर कठौती गॉव में बना है , माता का मंदिर एक ऊँचे टीले पर अवस्थित है ऐसा माना जाता है कि प्राचीन समय में यहा मंदिर था जो कालांतर में भूमिगत हो गया , वर्तमान मंदिर में माता की मूर्ति के स्थम्भ के रूप से मालुम चलता है कि यह मंदिर सन् ९३५ वर्ष पूर्व निर्मित हुआ था , मंदिर में स्थम्भ उत्तकीर्ण माता की मूर्ति चतुर्भुज है , माता के दाहिने हाथ में त्रिशूल एवं खडग है , तथा बायें हाथ में कमल एवं मुग्दर है , मूर्ति के पीछे पंचमुखी सर्प का छत्र है , तथा त्रिशूल है ,

क्षेंमकरी माता का एक मंदिर इंद्रगढ ( कोटा - बूंदी ) स्टेशन से ५ मील की दूरी पर भी बना है , यहा पर माता का विशाल मेला लगता है , क्षेंमकरी माता का अन्य मंदिर बसंतपुर के पास पहाडी पर भी है , बसंतपुर एक प्राचीन स्थान है , जिसका विशेष ऐतिहासिक महत्व है , सिरोही और मेवाड की सीमा पर स्थित यह कस्वा पर्वत मालाओ से आवृत्त है , और यहा राणा कुम्भा जी ने एक सुदृढ दुर्ग का निर्माण करवाया था , जिसके नाम से यह कस्वा बसंतपुर कहलाता है , यहा के लोग इस माता के खींमज माता भी कहते है , इस मंदिर का निर्माण विक्रम संवत ६८२ ( ई. सन् ६२५ ) में हुआ था , इस मंदिर का जीर्णोद्वार सिरोही के देवडा शासको द्वारा करवाया गया था , एक मंदिर भीलवाडा जिला राजसमंद में भी है , राजिस्थान से बाहर गुजरात प्रांत के रूपनगर में भी है ,

** सोलंकी वंश **

१- वंश - अग्निवंश

२- गोत्र - भरद्वाज

३- वेद - यजुर्वेद

४- कुलदेवी - क्षेमंकरी ( खींमज माता )

५- कुलदेव - विष्णु भगवान

६- गद्दी - पाठन

७- उत्पत्ति - आबूपर्वत

८- मूलपुरूष - चालुक्यदेव

९- राजधानी - आहणपुर ( पाठन)

१०- ईष्टदेवी- बहुचराजी

११- निशान - पीला

१२- घोडा - जर्द

१३- ढोली - बहल

सोलंकी राजपूतो की खांपे

बालणोत , खोडेरा , मलरा , मेहलगोता , भाणगोता , खराणा , कठवाड , तेजावत , बकसिया , भरसूंडा , सलावत , बैडा सोलंकी , उनयारिया , आदि।।

** जय माता दी**

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Bisen Rajput