Veer Jaimal Mertiya
Veer Jaimal Mertiya वीर जयमल मेड़तिया
3rd Battle of Chittorgarh 8000 Rajputs vs 60000 Mugals
चित्तोर पर अकबर का आक्रमण होने वाला था और राणा उदय सिंह को मेवाड़ के सरदारो ने सुरक्षित रखने के लिए कुम्भलगढ़ भेज दिया था तथा उदयसिंह ने राव जयमाल मेड़तिया को सम्पूर्ण चित्तोर का भार सौफ सेनापति नियुक्त किया था ये महा राणाप्रताप के सैनिक गुरु भी थे जयमल मेडतिया मेड़ता छोड़ने के बाद वह अपने परिवार व साथी सरदारों के साथ वीरों की तीर्थ स्थली चितौड़ के लिए रवाना हो गया | उस ज़माने में चितौड़ देशभर के वीर योद्धाओं का पसंदीदा तीर्थ स्थान था मातृभूमि पर मर मिटने की तम्मना रखने वाला हर वीर चितौड़ जाकर बलिदान देने को तत्पर रहता था | जयमल का काफिला मेवाड़ के पहाड़ी जंगलों से होता हुआ चितौड़ की तरफ बढ़ रहा था कि अचानक एक भील डाकू सरदार ने उनका रास्ता रोक लिया अपनी ताकत दिखाने के लिए भील सरदार ने एक सीटी लगाई और जयमल व उसके साथियों के देखते ही देखते एक पेड़ तीरों से बिंध गया | जयमल व साथी सरदार समझ चुके थे कि हम डाकू गिरोह से घिर चुके है और इन छुपे हुए भील धनुर्धारियों का सामना कर बचना बहुत मुश्किल है वे उस क्षेत्र के भीलों के युद्ध कौशल के बारे में भलीभांति परिचित भी थे | कुछ देर की खामोशी के बादराव जयमल के एक साथी सरदार ने जयमल की और मुखातिब होकर पूछा - "अठै क उठै " | जयमल का जबाब था "उठै " | जयमल के जबाब से इशारा पाते ही काफिले के साथ ले जाया जा रहा सारा धन चुपचाप भील डाकू सरदार के हवाले कर काफिला आगे बढ़ गया | डाकू सरदार को हथियारों से सुसज्जित राजपूत योद्धाओं का इस तरह समर्पण कर चुपचाप चले जाना समझ नहीं आया | और उसके दिमाग में "अठै क उठै " शब्द घूमने लगे वह इस वाक्य में छुपे सन्देश को समझ नहीं पा रहा था और बेचैन हो गया आखिर वह धन की पोटली उठा घोडे पर सवार हो जयमल के काफिले का पीछा कर फिर जयमल के सामने उपस्थित हुआ और हाथ जोड़करजयमल से कहने लगा -- हे वीर ! आपके लश्कर में चल रहे वीरों के मुंह का तेज देख वे साधारण वीर नहीं दीखते | हथियारों व जिरह वस्त्रो से लैश इतने राजपूत योद्धा आपके साथ होने के बावजूद आपके द्वारा इतनी आसानी से बिना लड़े समर्पण करना मेरी समझ से परे है कृपया इसका कारण बता मेरी शंका का निवारण करे व साथ ही मुझे "अठै क उठै" वाक्य में छिपे सन्देश के रहस्य से भी अवगत कराएँ | तब जयमल ने भील सरदार से कहा -- मेरे साथी ने मुझसे पूछा कि "अठै क उठै" मतलब कि (अठै) यहाँ इस थोड़े से धन को बचाने के लिए संघर्ष कर जान देनी है या यहाँ से बचकर चितौड़ पहुँच (उठै ) वहां अपनी मातृभूमि के लिए युद्ध करते हुए प्राणों की आहुति देनी है | तब मैंने कहा " उठै " मतलब कि इस थोड़े से धन के लिए लड़ना बेकार है हमें वही अपनी मातृभूमि के रक्षार्थ युद्ध कर अपने अपने प्राणों को देश के लिए न्योछावर करना है | इतना सुनते ही डाकू भील सरदार सब कुछ समझ चूका था उसे अपने किये पर बहुत पश्चाताप हुआ वह जयमल के चरणों में लौट गया और अपने किये की माफ़ी मांगते हुए कहना लगा -- हे वीर पुरुष ! आज आपने मेरी आँखे खोल दी , आपने मुझे अपनी मातृभूमि के प्रति कर्तव्य से अवगत करा दिया | मैंने अनजाने में धन के लालच में अपने वीर साथियों के साथ अपने देशवासियों को लुट कर बहुत बड़ा पाप किया है आप मुझे क्षमा करने के साथ-साथ अपने दल में शामिल करले ताकि मै भी अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ अपने प्राण न्योछावर कर सकूँ और अपने कर्तव्य पालन के साथ साथ अपने अब तक किये पापो का प्रायश्चित कर सकूँ | और वह भील डाकू सरदार अपने गिरोह के धनुर्धारी भीलों के साथ जयमल के लश्कर में शामिल हो अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ चितौड़ रवाना हो गया और जब अकबर ने 1567 ई. में चितौड़ पर आक्रमण किया तब जयमल के नेत्रित्व में अपनी मातृभूमि मेवाड़ की रक्षार्थ लड़ते हुए शहीद हुआ| 1567 में जयमल और चित्तोर के वीरो ने 6 महीने तक मुगलो को किल्ले में घुसने नही दिया अंत में जब किल्ले का राशन ख़तम हो गया तब 11000 राजपूत वीरांगनों ने जौहर किया और राजपूतो ने शाका तथा 8000 राजपूत वीर 60000 कि अकबर कि सेना पर भूखे शेर कि तरह टूट पड़े और युद्ध के अंत में कुल 48000 सैनिक मारे गए जिनमे मुग़ल 40000 और राजपूत 8000 थे।
ऐसे थे राजपुताना के राजपूत शेर !!!
जय भवानी
जय राजपुताना