Rajasthan Celebration of New Year during British Raj


इतिहास के झरोखे से: अंग्रेजों के जमाने में राजस्थान में ऐसे मनाया जाता था नया साल 


अंग्रेजी शासन के दौर में नववर्ष पर आयोजित भव्य समारोह में उल्लेखनीय काम करने वालों को अवार्ड दिए जाते और शहर के दरवाजों को गैस की रोशनी से रोशन किया जाता। रामनिवास बाग मे फूलों की प्रदर्शनी लगती जिसका उद्घाटन महाराजा करते।



राजपूताना की रियासतों की कमान संभालने वाले अंग्रेज अफसर भी परिवार के साथ नया साल मनाने जयपुर आते। सवाई रामसिंह व माधोसिंह के जमाने तक कोलकात्ता से मंगाए  गैस की बिजली के संयंत्र से दरवाजों पर रोशनी होती। सन 1926 में बिजली आई तब रेजीडेंसी, नाहरगढ़, सरगासूली, त्रिपोलिया, सिटी पैलेस, रामबाग व अल्बर्ट हॉल को भी रोशन किया जाने लगा।


नववर्ष की पूर्व संध्या पर 31 दिसम्बर 1897 को जयपुर क्लब में जलसा हुआ जिसमें भाग लेने अतिरिक्त गर्वनर जनरल क्रास्थवेस्ट भी अजमेर से जयपुर आए। उस जमाने की पहली होटल केसर हिंद और बाद में बनी जयपुर होटल में नववर्ष की पार्टियों का दौर चलने लगा।



नए साल की पूर्व संध्या से आठ दिन तक रामनिवास बाग में बैंड वादन होता। रामनिवास बाग में एक सप्ताह तक फ्लॉवर प्रदर्शनी लगती। इसमें फूल लाने के लिए शहर में इश्तिहार लग जाते। इस पुष्प प्रदर्शनी के विजेताओं को महाराजा पुरस्कार देते।



रियासत के सरकारी कार्यालयों, टेलीग्राफ, पोस्ट ऑफिस व चौड़ा रास्ता के महाराजा पुस्तकालय में स्थापित इंपीरियल बैंक में नए साल की छुट्टी रहती। रियासत में उल्लेखनीय कार्य के लिए नववर्ष पर अवार्ड दिए जाते।


जयपुर फाउण्डेशन के सियाशरण लश्करी के मुताबिक एक जनवरी 1918 में पिलानी के सेठ बलदेव दास बिड़ला को राय बहादुर व 1924 में बिड़ला को वंशानुगत राजा की उपाधि दी गई। सन 1936 में पुलिस अधीक्षक बाबू बी.एन.चक्रवर्ती को किंग्स मैडल,1937 में न्यायाधीश शीतला प्रसाद वाजपेयी को कम्पेनियम ऑफ इंडियन एम्पायर का सम्मान दिया।



इस तरह प्यारे लाल भार्गव को दीवान बहादुर, राजस्व मंत्री मियां अब्दुल अजीज को खान बहादुर, लाला दीवान चंद व नरेन्द्र सिंह जोबनेर को राव बहादुर के सम्मान से नवाजा गया। अंग्रेज रेजीडेंट राज महल पैलेस से हाथी पर महाराजा को सबसे पहले बधाई देने सिटी पैलेस आते। इसके बाद जागीरदार, अधिकारी व सेठ साहूकार भी महाराजा को बधाई व नजर पेश करते।


ईडर महाराजा सर प्रताप नए साल पर हमेशा जयपुर आते। वे आतिश दरवाजे के ऊपर महल में ठहरते। ध्रांगधा, पन्ना, कोटा,बीकानेर, उदयपुर, ग्वालियर आदि महाराजाओं के भी नववर्ष जयपुर में मनाने का उल्लेख मिलता है।



वर्ष 1908 में पुरा सामग्री के विश्वविख्यात कला मर्मज्ञ आनन्द कुमार स्वामी व  एक जनवरी 1921 को कश्मीर महाराजा प्रताप सिंह ने जयपुर महाराजा के साथ नया साल मनाया। नए साल पर घाटगेट के सेक्रेड हार्ट चर्च, ऑल सेंट चर्च,सेंट एंड्रज चर्च में विशेष प्रार्थना होती और नवजात शिशुओं का नामकरण होता।