जादौन ( जादव ) वंश की कुलदेवी श्री कैला माँ


** जादौन ( जादव ) वंश की कुलदेवी श्री कैला माँ **

राजस्थान के पूर्वी भाग में करौली राज्य यदुवंशी क्षत्रियो की वीर भूमि रही , करौली राजवंश की कुलदेवी के दो तरह के लेख मिलते है ।

जब यदुवंशी महाराजा अर्जुन देव जी ने १३४८ ई. में करौली राज्य की स्थापना की तभी उन्होने करौली से उत्तरी दिशा में २या ३ कि.मी. की दूरी पर पांचना नदी के किनारे पहाडी पर श्री अंजनी माता का मंदिर बनवा कर अपनी कुलदेवी के रूप में पूजने लगे और अंजनी माता जादौन राजवंश की कुलदेवी के रूप में पूजित हुई ।।

एक लेख यह मिलता है कि करौली राज्य के दक्षिण - पश्चिम के बीच में २३ कि. मी. की दूरी पर चम्बल नदी के पास त्रिकूट पर्वत की मनोरम पहाडियों में सिद्दपीठ श्री कैला देवी जी का पावन धाम है , यहॉ प्रतिवर्ष अधिकाधिक लाखो श्रृदालु माँ के भक्त दर्शनार्थ एकत्रित होते है ,

जिस स्थान पर माँ श्री कैला देवी जी का मंदिर बना है वह स्थान खींची राजा मुकुन्ददास की रियासत के अधीन थी वे संभवत चम्बल पार कोटा राज्य की भूमि के स्वामी थे जो गागरोन के किले में रहते थे , उन्होने बॉसीखेडा नामक स्थान पर चामुण्डा देवी की बीजक रूपी मूर्ति स्थापित करबाई थी और वो वहा अक्सर आराधना के लिये आते थे , ये बात सम्वत १२०७ की है ,

एक बार खींची राजा मुकुन्ददास जी अपनी रानी सहित चामुण्डा देवी जी के दर्शनार्थ आये उन्होने कैला देवी जी की कीर्ति सुनी तो माता के दर्शनार्थ आये , माता के दर्शनार्थ पश्चात उनके मन में माता के प्रति आगाध श्रृदा बड गयी , राजा ने देवी जी का पक्का मठ बनवाने का उसी दिन निर्माण शुरू करवा दिया जब माता का मठ बनकर तैयार हो गया तो उसके बाद श्री कैला देवी जी की प्रतिमा को मठ में विधि पूर्वक स्थापित करवा दिया ।

कुछ समय बाद विक्रम संवत १५०६ में यदुवंशी राजा चन्द्रसेन जी ने इस क्षेत्र पर अपना कब्जा कर लिया तब उसी समय एक बार यदुवंशी महाराजा चन्द्रसेन जी के पुत्र गोपाल दास जी दौलताबाद के युद्द में जाने से पूर्व श्री कैला माँ के दरबार में गये और माता से प्राथना करी कि माता अगर मेरी इस युद्द में विजय हुई तो आपके दर्शन करने के लिये हम फिर आयेंगे । जब राजा गोपाल दास जी दौलताबाद के युद्द में विजय हासिल कर के लौटे तब माता जी के दरबार में सब परिवार सहित एकत्रित हुये ।

तभी यदुवंशी महाराजा चन्द्रसेन जी ने कैला माँ से प्राथना करी कि हे कैला माँ आपकी कृपा से मेरे पुत्र गोपाल दास को युद्द में विजय हासिल हुई है । आज से सभी यदुवंशी राजपूत अंजनी माता जी के साथ साथ श्री कैला देवी जी को अपनी कुलदेवी ( अधिष्ठात्री देवी के रूप में ) पूजा किया करेंगे , और आज से मैया का पूरा नाम श्री राजराजेश्वरी कैला महारानी जी होगा ( बोल सच्चे दरबार की जय ) तभी से करौली राजकुल का कोई भी राजा युद्द में जाये या राजगद्दी पर बैठे अपनी कुलदेवी श्री कैला देवी जी का आशीर्वाद लेने जरूर जाता है , और तभी से मेरी मैया श्री राजराजेश्वरी कैला देवी जी करौली राजकुल की कुलदेवी के रूप में पूजी जा रही है ।।

मुझसे कई जादौन राजपूतो ने कहा कि मेरी कुलदेवी श्री कैला देवी जी नही है अंजनी माता जी है । तो ये बात स्पष्ट करने के लिये में खुद वर्तमान समय में करौली महाराजा कृष्ण पाल जी के परिवार के एक सदस्य श्री छत्रपाल जादौन जी से मिलने के लिये उनके घर गया और इस विषय पर मैने चर्चा की तब उन्होने हमारी समस्या का समाधान किया कि हमारी कुलदेवी अंजनी माता जी भी है और कैला देवी जी भी है , उन्होने बताया कि करौली के राजा को माता ने स्वप्न में भी ऐ बात कही थी कि मेरी अपने राजकुल की कुलदेवी के रूप में पूजा करो तभी से श्री कैला माँ को पूजते आ रहे है ।।

अगर मैने श्री कैला देवी जी का कुलदेवी के रूप में जानकारी देने में गल्ति की हो तो में आप लोगो से और श्री कैला माँ से क्षमा चाहता हूँ ।।

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Bisen Rajput