तौमर ( तंवर ) क्षत्रियो की कुलदेवी श्री चिलाय माता जी
** तौमर ( तंवर ) क्षत्रियो की कुलदेवी श्री चिलाय माता जी **
क्षत्रिय समाज कालांतर में चार महत्वपूर्ण वंशो में विभक्त हुआ , सूर्यवंश , चन्द्रवंश , रिषीवंश , और अग्निवंश , चन्द्रवंश में उत्तरीभारत के महत्वपूर्ण राजवंश कुरूक्षेत्र के अधिपति प्रारम्भ में कौरव , पांडव और यादव वंश के नाम से विख्यात हुये , इन्ही पांडव वंशियो के वंशज आगे चलकर तौमर या तंवर क्षत्रिय कहलाये , संस्कृत के इतिहास कार लेखक तंवर को तौमर लिखते है ।।तंवरों के पूर्वज पांडवो ने वर्तमान दिल्ली ( हस्तिनापुर , इन्द्रपृस्थ )को अपनी राजधानी बनाकर शासन किया , पांडवो ने अपनी कुलदेवी योगमाया को भगवान श्री कृष्ण जी के सहयोग से राजधानी में विधीवत स्थापित करवाया , जो आज भी यथावत विराजमान है , तौमरो की कुलदेवी के अनेक नाम प्राप्त होते है , जैसे - योगमाया , योगेश्वरी , चिलाय माता , और पाटन , तोरावाटी में सारूड ( सारंग ) आदि ,
दिल्ली व ग्वालियर के तंवर शासको के इतिहास के अध्यन से तंवरों की कुलदेवी या आराध्य देवी योगमाया या योगेश्वरी ही नाम प्राप्त होता है ,परंतु तौमरो की अन्य शाखा तोरावटी के तौमरों की कुलदेवी का मुख्य स्थान सारूड गॉव की पहाडी पर स्थित है , तथा सारंग ( सारूड) माता के नाम से प्रसिद्द है ,
इसी प्रकार दिल्ली की मुख्य शाखा ग्वालियर और ग्वालियर के शासक रामशाह तौमर जी के वंशजो के बीकानेर , जोधपुर व जयपुर में और कई प्रमुख ठिकाने स्थापित है ,यहा के तंवर भी अपनी कुलदेवी चिलाय माता जी को ही मानते है , साथ ही विभिन्न प्राप्त इतिहास ग्रंथो व लेखो में भी तंवरों की कुलदेवी के नाम योगमाया , योगेश्वरी , और चिलाय माता , सारंग देवी प्राप्त होते है , ।।
अत: स्पष्ट यही होता है कि पांडवो ने श्री कृष्ण जी की उपस्थती में योगमाया का जो मंदिर बनवाया था उसी मंदिर को दिल्ली के शासक महाराजा अनंगपाल तौमर जी ने पुन: स्थापित करवाया , यह मंदिर दिल्ली में कुतुब - महरौली मार्ग पर स्थित है । योगमाया का मंदिर होने से यह स्थान योगनीपुरी कहलाता था , इसी मंदिर के पास महाराजा अनंगपाल तौमर जी ने अनंगपाल नामक तालाब का निर्माण करवाया था , जिसके अवशेष आज भी प्राप्त है , वही योगमाया आगे चलकर योगमाया , योगेश्वरी , सारूड ( सारंग माता ) या चिलाय माता जी के नाम से विख्यात हुई ,
दिल्ली के अंतिम तौमर शासक तेजमाल ( ११९२ - ११९३ ) की मृत्यु के बाद उनके पुत्र अचलब्रह्म ने गोपांचलगढ ( ग्वालियर) के पास एसाहगढ में अपना नवीन राज्य स्थापित किया , जहा से दिल्ली के प्रथम शासक महाराजा अनंगपाल जी प्रथम गये थे । इसी एसाहगढ में तौमरों ने अपनी कुलदेवी का मंदिर स्थापित करवाया था ,जिनका मंदिर आज भी उपलब्ध है , तथा गोपांचलगढ ( ग्वालियर) के तौमर उनकी आज भी आराधना करते है ।।
राजिस्थान की राजधानी जयपुर शहर से करीब १११ कि.मी. की दूरी पर जयपुर - दिल्ली रोड पर कोटपुतली से ७ कि. मी. की पर नीमकाथाना मार्ग पर तौमर वंश की कुलदेवी श्री चिलाय माता जी का मंदिर बना है , यह मंदिर अरावली श्रंखला की पहाडी पर स्थित है , पाटन के राजा राव भोपाजी तंवर द्वारा यह मंदिर बनवाने का विवरण मिलता है, जहा पहले अग्यातवास में पांडवो ने योगमाया का मंदिर बनवाया था , इस स्थान को महाभारत काल में विराटनगर कहा जाता था ,
तंवरो की कुलदेवी श्री चिलाय माता जी ने पक्षी का रूप धारण कर राव धोतजी के पुत्र जयरथजी जाटू सिंह जी की बाल अवस्था में चील का रूप धारण कर रक्षा की थी जिसके कारण माँ योगमाया को चिलाय माता जी कहा जाता है , इतिहास कारो के अनुसार कुलदेवी का वाहन चिल पक्षी होने के कारण यह चिल या चिलाय माता जी कहलाई ।।
** तू संगती तंवरा तणी चावी मात चिलाय ।
** म्हैर करी अत मात थूं दिल्ली राज दिलाय ।।