गौड क्षत्रिय वंश की कुलदेवी माँ श्री महाकाली


** गौड क्षत्रिय वंश की कुलदेवी माँ श्री महाकाली **

गौडा ने रैयी गजब वीर - रीत व्हालीह ।
पूजी तो पूजी परम मात महाकालीह ।।

महाकाल की प्रियतम महाकाली ही मुख्य शक्ति है दार्शनिक दृष्टि से काल तत्व की प्रधानता सर्वोपरि मानी जाती है , इसलिये महाकाली की महत्ता स्पष्ट है , महाकाली के दो रूप है एक उग्र और दूसरा सौम्य यही महाकाली दस महाविधाएं का रूप धारण करती है , विधापति शिव की शक्तियों के रूप में महाविधाएं साधक को अनंत सिद्दियां प्रदान करने में समर्थ है । काली या महाकाली ही समस्त विधाओ कि आदि है ,काली रक्त और कृष्ण भेद से दो रूपो में अधिष्ठित है रक्तवर्णा का नाम सुंदरी और कृष्ण वर्णा का नाम दक्षिणा है , काली का नाम काली क्यो पडा इसका विवरण कालिका पुराण से मिलता है ,

उक्त पुराण में कथा आती है कि एक बार हिमालय पर अवस्थित मतंग मुनि के आश्रम में जाकर देवताओ ने महामाया की स्तुती की , स्तुती से प्रसन्न होकर मतंग वनिता के रूप में भगवती ने देवताओ को दर्शन दिये , और पूछा कि तुम लोग किसकी स्तुती कर रहे हो , उसी समय देवी जी के शरीर से काले पहाड के समान वर्ण वाली एक और दिव्य शक्ति नारी प्रगट हुई , उस महान तेजस्वनी ने स्वयं ही देवताओ की तरफ से उत्तर दिया , कि ये लोग मेरी ही स्तुती कर रहे है , वे काजल के समान कृष्णा थी इस लिये उनका नाम काली पडा ।।

दुर्गासप्तशती के अनुसार एक बार शुंभ और निशुम्भ दानव के अत्याचार से परेशान होकर देवताओ ने हिमालय पर जाकर देवीसूक्त से देवी की स्तुती की तब माँ गौरी के शरीर से कौशिकी का प्रगट होना है , कौशिकी का शरीर से अलग होते ही अम्बा पार्वती का स्वरूप कृष्णा हो गया जो काली के नाम से विख्यात हुई ,

शक्ति पूजा की परम्परा प्राचीन काल से हो रही है , अत: राजपूत काल में भी वह परम्परा होती चली आ रही है , अलग अलग कुल गोत्र के राजपूतो ने शक्ति के अलग अलग रूपो की पूजा कर इच्छित फल प्राप्त किया है , इसके फलस्वरूप कालांतर में अलग अलग स्वरूप अलग अलग कुल गोत्र वाले राजपूतो की कुलदेवी के रूप में प्रतिष्ठापित हुई , गौड कुल के राजपूत भी महाकाली जी की पूजा अर्चना करते आये है अत: महाकाली उनकी कुलदेवी के रूप में प्रतिष्ठापित हुई है , ।।

** गौड वंश **

वंश - सूर्यवंश

गोत्र - भारद्वाज

वेद - यजुर्वेद

कुलदेवी - महाकाली

ईष्टदेव- रूद्रदेव

शाखा- वाजसनयि

सूत्र - पारस्कर

वृक्ष- कैला

प्रवर - तीन - भारद्वाज , ब्राहस्पत्य, अंगिरस

शाखायें- अमेठिया गौड , अजमेरा गौड , मारोठिया गौड , अर्जुनदासोत गौड , पीपरिया गौड , सुकेत गौड आदि ।।

## जय शक्ति जय जय महाकाली ##