दहिया क्षत्रिय वंश कि कुलदेवी : कैवाय माता


दहिया क्षत्रिय वंश कि कुलदेवी : कैवाय माता 

दहिया कुल कीरत दिवी म्हैर करी नित माय ।
आदिभवानी अम्बिका किणसरिया कैवाय ।।

नागौर जिले में मकराना और परबत सर के बीच त्रिकोण पर परबतसर से ६-७ किलोमीटर उत्तर पश्चिम में अरावली पर्वत माला से परिवेष्टित किणसरिया गॉव है , जहॉ एक विशाल पर्वत श्रृंखला की सबसे ऊँची चोटी पर कैवाय माता का मंदिर बहुत ही प्राचीन प्रसिद्द बना है , विक्रम संवत् १०५६ ( ९९९ई.)| का एक शिलालेख उत्तकीर्ण है , उस शिला लेख से पता चलता है कि दधीचिक वंश के शासक चच्चदेव ने जो कि सॉभर के चौहान राजा दुर्लभराज ( सिंहराज का पुत्र ) का सामंत था , विक्रम संवत् १०५६ की वैशाख सुदी २१ अप्रैल ९९९ई. में यह भव्य मंदिर भवानी ( अम्बिका ) का बनवाया था ,
कैवाय माता जी के मंदिर में लगे एक हजार के शिलालेख में देवी के विभिन्न रूपो का वर्णन हुआ है ,

रक्तवर्ण नाना रूपो वाली यह देवी तुम्हारे लिये कल्याण कारी हो जिस देवी के विधी विधान से आराधना करके साधक अनेक प्रकार की सिद्दियो को प्राप्त हुये ।जिसके चरण स्पर्श से अनिष्ट का आचरण करने वाले राक्षस नष्ट हो जाते है ।।
वह सभी प्रयोजनों की पूर्ति करने वाली भगवती कात्यायनी तुम्हारी रक्षा करे ,

तत्पश्चात शिलालेख में शाकम्भरी ( सांभर) के चौहान शासकों वाकपतिराज , सिंहराज , और दुर्लभराज , की वीरता शौर्य और पराक्रम की प्रशंसा की गयी उनके अधीनस्त दधीचिक ( दहिया) वंश के सामंत शासको की उपलब्धियों की चर्चा करते हुये इस वंश ( दधीचिक या दहिया ) की उत्पत्ति के विषय में लिखा हुआ है कि देवताओ के द्वारा प्रहरण ( शस्त्र ) की प्राथना किये जाने पर जिस दधीचिक ऋषि ने अपनी हड्डियॉ दी थी उसके वंशज दधीचिक या दहिया कहलाये । इस दधीचिक वंश में पराक्रमी मेघनाथ हुआ जिसने युद्द क्षेत्र में बडी वीरता दिखाई थी , उसकी स्त्री मासटा से अतीव दानी और वीर वैरिसिंह का जन्म हुआ तथा उसकी धर्मपरायण पत्नी दुन्दा से चच्च उत्पन हुआ , इस चच्चदेव ने संसार की असारता का अनुभव कर कैलाश पर्वत के समान शिखराकृति वाली देवी भवानी केमंदिर का निर्माण करवाया था ,

कैवाय माता जी के मंदिर के सम्मुख बने तिबारे की दीवार पर जोधपुर के महाराजा अजीत सिंह के शासनकाल का विक्रम संवत् १७६८ शक संवत १६३३ अषाण सप्तमी का एक शिलालेख उत्तकीर्ण है जिसमें उनके शासनकाल में देवी जी के इस मंदिर का जीर्णोद्वार कराये जाने तथा उसके अग्रभाग में ( तिबारे) के निर्माण का उल्लेख हुआ है ,

** दहिया वंश **

वंश- सूर्यवंश ( दधीचि सूर्यवंशी थे बाद में ऋषि वंशी कहलाये )

गोत्र- गोतम

तीन प्रवर - अलो ( भूमि) नील - जल , साम ( भगवान )

कुलदेवी - कैवाय माता

कुलदेवता - काशी

ईष्टदेव- भैरू काला

नगारा - रणजीत

खडग - अवधीर

हाथी - सात मुख धारी

नदी - गंगा ( सोरमघाट)

वृक्ष- नीम और कदम

दहियो की उपाधि - राजा , राणा , रावत

पक्षी- कबूतर

तलवार- रणथली

अभिवादन - जय कैवाय माता जी

दहियों की प्रयुक्त शाखा- गोरा दहिया

वेद - यजुर्वेद

निशान- पचरंगी

शाखा - वाजसनयि

भैरव - हर्षनाथ

दहियो के राज्य - परबतसर , मारोठ ( नागौर) , जांगलू ( बीकानेर ) , सावर ,घटियाली ( अजमेर) , हरसोर ( जोधपुर राज्य ) नैणवा ( बूंदी राज्य ), स्योपुर - पाटन ( म. प्र. ) , साचौर ( जालौर ) , भदियावद , रोहडो ( नागौर) ।।

** जय श्री कैवाय माता जी **